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Sunday, 3 September 2017

Kepler Law of Planetary Motion

केप्लर के नियम 

1. केपलर का प्रथम नियम
कक्षीय संरचना का नियम या दीर्घवित्तीय कक्षाओ का नियम: प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्तीय कक्षा (जिसकी दो नाभि होती हैं) में परिक्रमा करते हैं। और प्रत्येक दीर्घवृत्तीय कक्षा की एक नाभि में सूर्य स्थित होता है। इसे ही केप्लर का प्रथम नियम कहते हैं।   

नोट:- प्रत्येक ग्रह की एक निश्चित कक्षा होती है अर्थात भिन्न-भिन्न ग्रहों की भिन्न-भिन्न कक्षाएं होती है। 


2. ग्रहों की कक्षीय गति का नियम : किसी क्षण ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली काल्पनिक रेखा एक समान समय-अंतराल में एक समान क्षेत्रफल तय करती है। इसे ही केप्लर का दूसरा नियम कहते हैं। इस नियम के द्वारा ग्रह की कक्षीय गति (चाल) परिभाषित होती है। सरल शब्दों में कहूँ तो कक्षीय गति करते समय जब कोई ग्रह सूर्य से दूर होता है। तब उस ग्रह की गति कम होती है। जबकि वही ग्रह जब सूर्य के नज़दीक पहुँचता है। तब उस ग्रह की गति बढ़ जाती है। 

3. ग्रहों के परिक्रमणकाल का नियम : ग्रह के परिक्रमणकाल का वर्ग सूर्य से उस ग्रह की औसत दूरी के घन के अनुक्रमानुपाती होता है। अर्थात जो ग्रह सूर्य से जितना अधिक दूर रहेगा। उसका परिक्रमणकाल उतना ही अधिक होगा। इसे ही केप्लर का तीसरा नियम कहते हैं। यह नियम केप्लर के दूसरे नियम का ही विस्तृत रूप है। हम सभी ग्रहों की कक्षाओं को वृत्त मानकर ही चलते हैं। क्योंकि सूर्य से सभी ग्रहों की कक्षाओं का निकटतम और दूरस्थ बिंदु की दूरी का अंतर सिर्फ 3 % प्रतिशत ही होता है। इसलिए विशेष प्रयोजन में ही इन कक्षाओं को दीर्घवृत्तीय मानकर गणना की जाती है। 

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Anju Anand

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