सरस्वती योग (Saraswati Yoga)
यह तब बनता है जब शुक्र बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ हों अथवा केन्द्र में बैठकर एक दूसरे से सम्बन्ध बना रहे हों। युति अथवा दृष्टि किसी प्रकार से सम्बन्ध बनने पर यह योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है उस पर विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा रहती है। सरस्वती योग वाले व्यक्ति कला, संगीत, लेखन, एवं विद्या से सम्बन्धित किसी भी क्षेत्र में काफी नाम और धन कमाते हैं।
पारिजात योग (Parijat Yoga) भी उत्तम योग माना जाता है लेकिन इस योग की विशेषता यह है कि यह जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है वह जीवन में कामयाबी और सफलता के शिखर पर पहुंचता है परंतु रफ्तार धीमी रहती है यही कारण है कि मध्य आयु के पश्चात इसका प्रभाव दिखाई देता है। पारिजात योग का निर्माण तब होता है जबकि जन्म पत्रिका में लग्नेश जिस राशि में होता है उस राशि का स्वामी कुण्डली में उच्च स्थान पर हो या अपने घर में हो।
लग्नेश मंगल मीन राशि में स्तिथ है और मीन राशि का स्वामी अपनी उच्च राशि में विराजमान है
रूचक योग / Ruchaka Yoga -
वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी कुंडली में बनने वाले अति शुभ पंचमहापुरुष योगों में से एक रूचक योग है, रूचक योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है | मंगल से बनने वाला यह योग अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण योग है, कुंडली के केंद्र स्थान 1,4,7,10 में मंगल देवता इस योग का निर्माण करते है।
मंगल केंद्रस्थ होकर अपनी मूल त्रिकोण, स्वगृही अथवा उच्च राशि का हो तो "रूचक योग" होता है | रूचक योग होने पर जातक बलवान, साहसी, तेजस्वी, उच्च स्तरीय वाहन रखने वाला होता है | ये अच्छे नेता के साथ ही कलाप्रेमी भी होते हैं। इस योग के जातक बड़े हिम्मती .ताकतवर व नेतृत्व् क्षमता से परिपूर्ण होते हैं इस योग में जन्मा जातक विशेष पद प्राप्त करता है |
भूमिपुत्र मंगल द्वारा बनने वाला रूचक योग कर्क व सिंह लग्न में अधिक प्रभावी होता हैं
होरा रत्नम के अनुसार अगर कुंडली में सूर्य और चन्द्र बली न हो तो योग के शुभ फलों में न्यूनता आती है लेकिन जातक फिर भी सुखी रहता है
यह तब बनता है जब शुक्र बृहस्पति और बुध ग्रह एक दूसरे के साथ हों अथवा केन्द्र में बैठकर एक दूसरे से सम्बन्ध बना रहे हों। युति अथवा दृष्टि किसी प्रकार से सम्बन्ध बनने पर यह योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में बनता है उस पर विद्या की देवी मां सरस्वती की कृपा रहती है। सरस्वती योग वाले व्यक्ति कला, संगीत, लेखन, एवं विद्या से सम्बन्धित किसी भी क्षेत्र में काफी नाम और धन कमाते हैं।
पारिजात योग (Parijat Yoga) भी उत्तम योग माना जाता है लेकिन इस योग की विशेषता यह है कि यह जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है वह जीवन में कामयाबी और सफलता के शिखर पर पहुंचता है परंतु रफ्तार धीमी रहती है यही कारण है कि मध्य आयु के पश्चात इसका प्रभाव दिखाई देता है। पारिजात योग का निर्माण तब होता है जबकि जन्म पत्रिका में लग्नेश जिस राशि में होता है उस राशि का स्वामी कुण्डली में उच्च स्थान पर हो या अपने घर में हो।
लग्नेश मंगल मीन राशि में स्तिथ है और मीन राशि का स्वामी अपनी उच्च राशि में विराजमान है
रूचक योग / Ruchaka Yoga -
वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी कुंडली में बनने वाले अति शुभ पंचमहापुरुष योगों में से एक रूचक योग है, रूचक योग वैदिक ज्योतिष में वर्णित एक अति शुभ तथा दुर्लभ योग है | मंगल से बनने वाला यह योग अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण योग है, कुंडली के केंद्र स्थान 1,4,7,10 में मंगल देवता इस योग का निर्माण करते है।
मंगल केंद्रस्थ होकर अपनी मूल त्रिकोण, स्वगृही अथवा उच्च राशि का हो तो "रूचक योग" होता है | रूचक योग होने पर जातक बलवान, साहसी, तेजस्वी, उच्च स्तरीय वाहन रखने वाला होता है | ये अच्छे नेता के साथ ही कलाप्रेमी भी होते हैं। इस योग के जातक बड़े हिम्मती .ताकतवर व नेतृत्व् क्षमता से परिपूर्ण होते हैं इस योग में जन्मा जातक विशेष पद प्राप्त करता है |
भूमिपुत्र मंगल द्वारा बनने वाला रूचक योग कर्क व सिंह लग्न में अधिक प्रभावी होता हैं
होरा रत्नम के अनुसार अगर कुंडली में सूर्य और चन्द्र बली न हो तो योग के शुभ फलों में न्यूनता आती है लेकिन जातक फिर भी सुखी रहता है
पुष्कल योग :
वैदिक ज्योतिष में पुष्कल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश अर्थात पहले घर के स्वामी ग्रह के साथ हो तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तो ऐसी कुंडली में पुष्कल योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद प्रदान कर सकता है।
वैदिक ज्योतिष में पुष्कल योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में चन्द्रमा लग्नेश अर्थात पहले घर के स्वामी ग्रह के साथ हो तथा यह दोनों जिस राशि में स्थित हों उस राशि का स्वामी ग्रह केन्द्र के किसी घर में स्थित होकर अथवा किसी राशि विशेष में स्थित होने से बलवान होकर लग्न को देख रहा हो तथा लग्न में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तो ऐसी कुंडली में पुष्कल योग बनता है जो जातक को आर्थिक समृद्धि, व्यवसायिक सफलता तथा सरकार में प्रतिष्ठा तथा प्रभुत्व का पद प्रदान कर सकता है।
अन्य शुभ योगों की भांति ही पुष्कल योग के भी किसी कुंडली में बनने तथा शुभ फल प्रदान करने के लिए यह आवश्यक है कि पुष्कल योग का किसी कुंडली में निर्माण करने वाले सभी ग्रह शुभ हों तथा इनमें से एक अथवा एक से अधिक ग्रहों के अशुभ होने की स्थिति में कुंडली में बनने वाला पुष्कल योग बलहीन हो जाता है
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Anju Anand