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Thursday, 27 November 2014

क्षय तिथि और वृद्धि तिथि

तिथियां सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक न हो कर एक निश्चित अंतराल तक रहती हैं। प्रत्येक तिथि की अवधि समान नहीं होती। सूर्य और चंद्रमा के अंतराल (12  की दूरी) से तिथियां निर्मित होती हैं। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं। अत: उस दिन सूर्य और चंद्रमा का भोग्यांश समान होता है। चंद्रमा अपनी शीघ्र गति से जब 12 अंश आगे बढ़ जाता है तो एक तिथि पूर्ण होती है-

‘भक्या व्यर्कविधोर्लवा यम कुभिर्याता तिथि: स्यात्फलम्’।

जब चंद्रमा सूर्य से 24 अंश की दूरी पर होता है तो दूसरी तिथि होती है। इसी तरह सूर्य से चंद्रमा 180 अंश की दूरी पर होता है तो पूर्णिमा तिथि होती है और जब 360 अंश की दूरी पर होता है तो अमावस्या तिथि होती है। तिथि की वृद्धि अथवा क्षय होना स्थान विशेष के सूर्योदय के आधार पर होता है।
ग्रहों की विभिन्न गतियों के कारण ही तिथि क्षय एवं वृद्धि होती है। एक तिथि का क्षय 63 दिन 54 घटी 33 कला पर होती है। जिसमें एक सूर्योदय हो वह शुद्ध, जिसमें सूर्योदय न हो वह क्षय और जिसमें दो सूर्योदय हो वह वृद्धि तिथि कहलाती है।

क्षय तिथि - जो तिथि सूर्योदय के बाद प्रारंभ होती है एवं अगले सूर्योदय के पूर्व समाप्त हो जाती है, “क्षय तिथि” कहलाती है। चूंकि यह तिथि सूर्योदय के समय नहीं होती । अतः इस तिथि को नहीं माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य के लिए वर्ज्य होती है।

वृद्धि तिथि - वह तिथि जो सूर्योदय के बाद प्रारम्भ होती है और सूर्योदय के बाद तक रहती है चूँकि यह तिथि दो सूर्योदय तक रहती है इसलिए इसको दो दिन तक माना जाता है यह तिथि वृद्धि कहलाती है

क्षय और वृद्धि तिथियां शुभ कार्यों में वर्ज्य और शुद्ध तिथि शुभ होती है।

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Anju Anand

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