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Wednesday, 23 April 2014

होरा चक्र से सप्तवारों का नामकरण,

यथा- चैत्रं मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेहनि। --ब्रह्म पुराण
चैत्रमास के प्रथम दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि की रचना का प्रथम दिन चैत्र मास का प्रथम दिवस था। 
भारतीय ज्योतिष में होरा चक्र का बहुत महत्व हैज्योतिष ग्रंथों में वर्णित निम्न श्लोक भारतीय ज्योतिष में होरा चक्र के महत्व को दर्शाता भी है

"अर्थार्जने सहाय:पुरुषाणामापदर्णवे पोत:,  
यात्रा समये मन्त्री जातकमहापाय नास्त्यपर:" ॥ 

र्थात:- मनुष्यों को धन अर्जित करने मे यह (होरा शास्त्र) सहायता करता है, (शुभ दशा में लाभ और अशुभ दशा मे हानि), विपत्ति रूपी समुद्र में नौका या जहाज का कार्य करता है, एवं यात्रा के समय में मंत्री अर्थात उत्तम सलाहकार होरा शास्त्र को छोड कर अन्य कोई नहीं हो सकता है.

"यस्य ग्रहस्य वारे यत्किंचित्कर्म प्रकीर्तित:। 
तत्तस्य काल होरायां सर्वमेव विधीयते।।"

महर्षियों ने कहा है कि जो काम जिस वार में करना विहित है, उसे उसके काल होरा में करें। कार्य जिस नक्षत्र में विहित है, वह उस नक्षत्र के स्वामी के मुहूर्त में करें।

 कर्मफललाभहेतुं चतुरा: संवर्णयन्त्यन्ये, 
होरेति शास्त्रसंज्ञा लगनस्य तथार्धराशेश्च ॥ - सारावली

होरा का ज्योतिष शास्त्र एवं मुहूर्त में बहुत महत्त्व माना गया है किसी भी कार्य को निर्विघ्न और उत्तम  तरीके से करने के लिए वार की उपयोगिता है लेकिन किसी कारणवश अगर वार में कार्य सम्भव न हो तो उस वार स्वामी के होरा में किया जा सकता है


हिंदू मान्यताओं के अनुसार सूर्योदय के साथ ही दिन का प्रवेश पूर्णत: प्रकृति प्रदत्त एवं वैज्ञानिक है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार दिन और रात्रि के कालखंड को 24 भागो में बाँटा गया है एक दिन-रात में 24 होराएँ होती हैं जिन्हें हम 24 घंटो के रूप में जानते हैं प्रत्येक होरा का अधिपत्य सात ग्रहों को दिया गया है जिसके अनुसार दिनों का नामकरण किया गया। 

"अहोरात्र अर्थात होरा चक्र’’ से सप्तवारों का सम्बन्ध
पृथ्वी अपनी धुरी पर 24घण्टे में एक चक्र पूरा कर लेती है जिसमें 12 घण्टे पृथ्वी का पूर्वार्ध तथा 12 घण्टे उत्तरार्ध सूर्य के सामने रहता है। इसमें पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सामने रहता है उसे अह: तथा जो पीछे रहता है उसे रात्र कहा गया। एक सूर्योंदय से दूसरे सूर्योदय तक का काल अहोरात्र कहा जाता है। 


                         अहोरात्राद्यंतलोपाद्धोरेति प्रोच्यते बुधै:।
                         तस्य हि ज्ञानमात्रेण जातकर्मफलं वदेत्।। (बृ. पा. हो. शा. अध्याय 3/2)


    अहोरात्र पद के आदि (अ) और अंतिम (त्र) वर्ण के लोप से होरा शब्द बनता है। इस होरा (लग्न) के ज्ञान मात्र से जातक का शुभाशुभ कर्मफल कहना चाहिए।

इस प्रकार एक दिन-रात्र में 24 होराएँ होती हैं अर्थात प्रत्येक होरा 1घण्टे के बराबर होती है जब होरा का निर्धारण किया जाता है तो होरा का क्रम ग्रहों के आकार के क्रमानुसार स्वत: ही निर्धारित हो जाता है


रविचंद्रभौमबुधजीवशुक्रसौरा दिनादिपतयश्च 
मसे चाश्वयुजादो दिनेश्वरोSब्दे दिनपतेश्च ||१|| -सारावली 

सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, ये दिनादि स्वामी होते हैं आश्विनादि वर्ष व मास से प्रथम वार (सूर्यादि) जो होता है वही वर्षेश व मासेश होता है

अब प्रश्न ये है की प्रथम वार सूर्य का तो द्वितीय चंद्र का ही क्यों मंगल का क्यों नहीं ??

पृथ्वी से उत्तरोत्तर दूरी के आधार पर ग्रहों का क्रम निर्धारित किया गया, यथा- शनि, गुरु, मंगल, सूर्य, शुक्र, बुद्ध और चन्द्रमा। इनमें चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे पास है तो शनि सबसे दूर ।
आकाश मंडल में शनि, बृहस्पति, मंगल, रवि, शुक्र, बुध और चंद्रमा, इन सातों ग्रहों की स्थिति क्रमशः एक दूसरे से नीचे मानी गई है, अर्थात शनि की कक्षा सबसे ऊपर है । शनि से नीचे गुरु, गुरु से नीचे मंगल, मंगल से नीचे सूर्य, सूर्य से नीचे शुक्र, शुक्र से नीचे बुध तथा बुध से नीचे चंद्रमा की कक्षा है ।

सूर्य सिद्धांत में भी कहा गया है -
मंदादध: क्रमेण स्युश्च तुर्या दिवसाधिपा:(अध् १२/ श्लो ७८)


अर्थात शनि से
चतुर्थ सूर्य, सूर्य से चतुर्थ चन्द्रमा, चन्द्रमा से चतुर्थ भौम इत्यादि सात वार होते  हैं ये ही सात वार वर्षेश, मासेश, वारेश (दिन स्वामी) व होरेश होते हैं वर्षारम्भ में जो सूर्यादि वार हो वही वर्षेश, मासारम्भ में जो वार हो वह मासेश एवं प्रथम होरारम्भ में भी जो वार हो वही होरेश होता है। 

 ज्योतिष शास्त्र में इस बात का उल्लेख है कि जब सृष्टि की रचना हुई और पूर्व क्षितिज पर सर्वप्रथम सूर्यदेव प्रकट हुए तो उस दिन का पहला होरा सूर्य का होरा माना गया, अतएव सृष्टि की रचना का प्रथम दिवस रविवार माना गया है।

उसके पश्चात प्रत्येक होरा पर एक ग्रह का अधिपत्य रहता है, अर्थात उस दिन की दूसरी होरा का स्वामी सूर्य के समीप वाला (पृथ्वी से उत्तरोत्तर दूरी के आधार पर) ग्रह "शुक्र ", इसी प्रकार तीसरी होरा का स्वामी बुध, चौथी होरा का स्वामी -चंद्रमा, पांचवीं होरा का स्वामी -शनि, छठी होरा का स्वामी -बृहस्पति, सातवीं होरा का स्वामी -मंगल, आठवीं होरा का स्वामी फिर से सूर्य, नौवीं होरा का स्वामी फिर शुक्र, दसवीं होरा का स्वामी फिर बुध, इसी प्रकार क्रम चलता रहता है । पहले दिन की होरा सूर्य से आरम्भ तथा बुध पर समाप्त होती है | इसी क्रम से चलते हुए बुध की होरा पर दिन की 24 होरा पूरी हो जाती हैं और 25 होरा यानि नए दिन की शुरुआत अब चूँकि क्रम से चन्द्र की होरा चलेगी इसलिए रविवार के पश्चात चंद्रवार यानि सोमवार आता है।




इसी क्रम से तीसरे दिन की पहली होरा का स्वामी मंगल होता है अतः उस दिन को मंगलवार कहा जाता है 

चौथे दिन की पहली होरा का स्वामी बुध होता है अतः उस दिन को बुधवार कहा जाता है

पाँचवें दिन की पहली होरा का स्वामी बृहस्पति होता है अतः उस दिन को बृहस्पतिवार कहा जाता है

छठे दिन की पहली होरा का स्वामी शुक्र होता है अतः उस दिन को शुक्रवार कहा जाता है

सातवें दिन की पहली होरा का स्वामी शनि होता है अतः उस दिन को शनिवार कहा जाता है

इसी क्रम से आठवें दिन की पहली होरा - सूर्य आ जाती है, अतः आठवाँ दिन फिर रविवार के नाम से पुकारा जाता है

इसी प्रकार क्रमशः 
1- सूर्य
2 - चन्द्र
3 - मंगल
4 - बुध
5 - गुरु
6 - शुक्र
7 - शनि ये सातों ग्रह दिन की पहली होरा के स्वामी होते हैं 

यह क्रम निरंतर चलता रहता है, इसलिए इन सातों ग्रहों की प्रथम होरा के आधार पर सात दिनों [सप्ताह] के नाम रखे गये हैं  सात ग्रहों के सात होरा हैं, जो दिन रात के 24 घण्टों में घूमकर मनुष्य को कार्य सिद्धि के लिए अशुभ समय में भी शुभ अवसर प्रदान करते हैं।


बिना सारणी के होरा ज्ञात करने की विधि:-


३० सूर्यादि (सावन) दिन का एक मास होता है इसलिए जिस मास के मध्य में वारेश ज्ञात करना हो वहां तक चैत्र शुक्लादि से गत मास संख्या को तीस से गुना करके गत दिन संख्या जोड़ कर सात से भाग देने पर जो शेष बचे वह सूर्यादि क्रम से दिन का स्वामी (वारेश) होता है एवं गतदिनादि से वर्षेश का ज्ञान करना चाहिए 

• किसी भी वार का प्रथम होरा उसी वार से प्रारंभ होता है। उस वार से विपरीत क्रम से वारों को एक-एक के अंतर से गिनें।

• जैसे बुधवार को प्रथम होरा बुध का, तत्पश्चात विपरीत क्रम से मंगल को छोड़कर चंद्र का होरा एवं रवि को छोड़कर शनि का होरा होगा।

इसी क्रम से आगे शेष 21 होरा उस दिन व्यतीत होंगे।


सूर्य की होरा - राजनीति, सरकार का व्यवहार, सरकारी नौकरियां, अदालत, साहस, सरकारी नौकरी ज्वाइन करना, चार्ज लेना और देना, अधिकारी से मिलना, टेंडर भरना व मानिक रत्न धारण करना, सूर्य की होरा राजसेवा के लिए उपयुक्त है

चंद्र की होरा - यात्रा, रोमांस, गहने, कला, यह होरा सभी कार्यो हेतु शुभ मानी जाती हैं

मंगल की होरा- भूमि एवं कृषि, भाई, इंजीनियरिंग, खेल, पुलिस व न्यायालयों से सम्बंधित कार्य व नौकरी ज्वाइन करना, जुआ सट्टा लगाना, क़र्ज़ देना, सभा समितियो में भाग लेना,मूंगा एवं लहसुनिया रत्न धारण करना, मंगल की होरा युद्ध, कलह, विवाद, लडाई झगडे के लिये शुभ है।

बुध की होरा- व्यापार, शिक्षा, ज्योतिष, पढ़ना और लिखना, लेखन व प्रकाशन कार्य करना, प्रार्थना पत्र देना, विद्या शुरू करना, कोष संग्रह करना, पन्ना रत्न धारण करना, बुध की होरा ज्ञानार्जन के लिये शुभ है।

गुरु की होरा - यह होरा सभी कार्यो हेतु शुभ मानी जाती हैं, नौकरियां, व्यवसाय, बड़े अधिकारियो से मिलना,शिक्षा विभाग में जाना व शिक्षक से मिलना,विवाह सम्बन्धी कार्य करना,पुखराज रत्न धारण करना, गुरु की होरा विवाह के लिये शुभ है

शुक्र की होरा - प्रेम, विवाह, गहने, मनोरंजन, नृत्य, नए वस्त्र पहनना,आभूषण खरीदना व धारण करना, फिल्मो से सम्बंधित कार्य करना, मॉडलिंग करना, यात्रा करना, हीरा व ओपल रत्न पहनना, शुक्र की होरा विदेशवास के लिये शुभ है

शनि की होरा -श्रम, लोहा, तेल, नौकर, त्याग, मकान की नींव खोदना व खुदवाना, कारखाना शुरू करना, वाहन व भूमि खरीदना, नीलम व गोमेद रत्न धारण करना, शनि की होरा धन और द्रव्य इकट्ठा करने के लिये शुभ है

इस प्रकार विभिन्न ग्रह की होरा में विभिन्न कार्य सफलता हेतु किए जा सकते हैं। सौम्यवार की होरा सौम्यफल देने वाली होती है। जिस वार की होरा में जो कर्म करने को कहा गया है उस वार की होरा में वहीं कर्म करना चाहिए। सूर्य की होरा उग्र, चन्द्र की होरा श्रेष्ठ, मंगल की होरा क्रोध, बध की होरा सम, गुरू की होरा तीव्र, शुक्र की होरा अति शीघ्र तथा शनि की होरा विलम्ब से फल देने वाली होती है।


रविवार को चतुर्थ, सोमवार को सप्तम, मंगलवार को द्वितीय, बुधवार को पंचम, गुरूवार को अष्टम, शुक्रवार को तृतीय तथा शनिवार को षष्टम यामार्द्ध में वार-बेला होती है। वार-बेला में हर प्रकार के शुभ कर्म वर्जित है। इस क्रम के प्रत्येक वार में वेला राहु की होती है।

अंक शास्त्र के अनुसार होरा का उपयोग

अंक 1/4 सोम (रवि) की होरा : 
राज्याभिषेक, प्रशासनिक कार्य, नवीन पद ग्रहण, राज-दर्शन, राज्यसेवा, औषधि का निर्माण, स्वर्ण-ताम्रादि कार्य, यज्ञ, मन्त्रोपदेश, गाय-बैल एवं वाहन का क्रय आदि कार्य करें।

अंक 2/7 चन्द्र (सोम) की होरा : 
कृषि सम्बन्धी कार्य, नवीन वस्त्र अथवा मोती रत्न, आभूषण धारण, नवीन योजना, परिकल्पना, कला सीखना, बाग-बगीचा लगाना, वृक्षारोपण एवं चांदी की वस्तुओं का निर्माण कार्य करें।

अंक 9 मंगल की होरा : 
वाद-विवाद, मुकद्दमा, जासूसी कार्य, छल करना, असद् कार्य, ऋण देना, युद्ध-नीति, साहस कृत्य, खनन कार्य, स्वर्ण-ताम्रादि कार्य, शल्य-क्रिया (आपरेशन) एवं व्यायाम कार्य करें। अंक 5 बुध की होरा : साहित्यारम्भ, पठन-पाठन, शिक्षा-दीक्षा, लेखन, प्रकाशन, अध्ययन, शिल्पकला, मैत्री, क्रीड़ा, धान्य-संग्रह, चातुर्य, बही-खाता, हिसाब-किताब, लोक-सम्पर्क एवं पत्र व्यवहार कार्य करें।

अंक 3 गुरु की होरा : 
धार्मिक कार्य, विवाह, ग्रह-शान्ति, यज्ञ-हवन, दान-पुण्य, मांगलिक कार्य, देवार्चन, देव-प्रतिष्ठा, न्यायिक कार्य, नवीन वस्त्राभूषण धारण, विद्याभ्यास, वाहन क्रय-विक्रय एवं तीर्थाटन कार्य करें।

अंक 6 शुक्र की होरा : 
नृत्य-संगीत, स्त्री-प्रसंग, प्रेम-व्यवहार, प्रियजन-समागम, उत्सव, वस्त्र अलंकार धारण, लक्ष्मी-पूजन, प्रवास, व्यापारिक कार्य, कृषि-कार्य, ऐश्वर्यवर्द्धक काय एवं फिल्म-निर्माण कार्य करें।

अंक 8 शनि की होरा : 
गृह-प्रवेश, नौकर-चाकर रखना, सेवा विषयक कार्य, मशीनरी कल-पुर्जों के कार्य, असत्य भाषण, छल कपट, अर्क-निष्कासन, विसर्जन, धन-संग्रह एवं पद-ग्रहण कार्य करें। 


 

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Anju Anand

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